पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कुलदीप तिवारी ने पटियाला के एक लिव-इन जोड़े के लिए पुलिस सुरक्षा का आदेश देने से इनकार कर दिया। सजा सुनाते समय उन्होंने कहा कि उन्होंने देखा कि उस व्यक्ति की पहले भी शादी हो चुकी थी और उसकी दो साल की बेटी भी थी।

दयानंद शर्मा, Chandigarh। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा है कि जो व्यक्ति अपनी पूर्व पत्नी को तलाक दिए बिना अश्लीलता और व्यभिचार का जीवन जीता है, वह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 494 के तहत द्विविवाह के लिए उत्तरदायी है।

मेरी शादी से एक दो साल की बेटी भी है।

न्यायमूर्ति कुलदीप तिवारी ने यह टिप्पणी पटियाला के एक जोड़े के लिए पुलिस सुरक्षा का आदेश देने से इनकार करते हुए की, जो लिव-इन रिलेशनशिप में थे क्योंकि उन्होंने देखा कि वह व्यक्ति पहले से शादीशुदा था और उनकी दो साल की बेटी है।

सात साल तक की कैद और जुर्माना 

उच्च न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता पुरुष पहले पति या पत्नी से तलाक की कोई वैध डिग्री प्राप्त किए बिना पिछली शादी के दौरान दूसरी याचिकाकर्ता महिला (साथ में रहने वाली साथी) के साथ अश्लीलता और व्यभिचार का जीवन जी रहा था, जो 494/495 के तहत उचित था। भारतीय दंड संहिता के अनुसार, यह एक दंडनीय अपराध है जिसमें सात साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है।

तलाक का मामला पारिवारिक न्यायालय में लंबित है

सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ता पुरुष और उसकी पत्नी के बीच तलाक का मामला फैमिली कोर्ट में लंबित है। अदालत ने कहा कि व्यक्ति का आचरण अभी भी आईपीसी की धारा 494 (पति या पत्नी के जीवनकाल के दौरान पुनर्विवाह) और 495 (उस व्यक्ति से पिछली शादी को छुपाना जिसने बाद में शादी का अनुबंध किया था) के तहत अपराध माना जाएगा।

पुरुष और साथ रहने वाले साथी का कहना है कि जान को खतरा है 

उस व्यक्ति और उसके आम-कानूनी साथी ने अपने रिश्तेदारों के जीवन को खतरे का हवाला देते हुए पुलिस सुरक्षा के लिए अदालत में याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने सुना कि जहां पुरुष के परिवार ने रिश्ते को स्वीकार कर लिया था, वहीं महिला (साथी) के परिवार ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी थी।

न्यायमूर्ति तिवारी ने कहा कि याचिका में ऐसी धमकियों के बारे में केवल निराधार और अस्पष्ट आरोप लगाए गए हैं।

कोई वैध, ठोस साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया गया 

अदालत ने आगे कहा कि आरोपों के समर्थन में कोई सामग्री दर्ज नहीं की गई है और यह दिखाने के लिए कोई उदाहरण पेश नहीं किया गया है कि ऐसी धमकियां कैसे दी जा सकती हैं। उच्च न्यायालय ने कहा कि अदालत ऐसे आरोपों को समर्थन में किसी वैध और पुष्ट सामग्री के अभाव में हल्के और भोलेपन से स्वीकार नहीं कर सकती।

हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी

इसलिए उच्च न्यायालय ने साथ रहने वाले जोड़े के बचाव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह कार्यवाही व्यभिचार मामले में किसी भी आपराधिक मुकदमे से बचने के लिए लाई गई प्रतीत होती है। उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता चाहता है कि यह अदालत अदालत के समक्ष याचिका दायर करने की आड़ में उसके छिपे इरादों और उसके आचरण को मंजूरी दे।

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