Hindi News – आज यानि 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थय दिवस मनाया जाता है. ये और बात है कि कोरोना के कारण विश्व भर में लोगों को प्रतिदिन स्वास्थय दिवस के जैसे ही अपना ध्यान रखना पड़ रहा है. लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे लोगों के बारे में जो अजीबो बीमारियों से जूझ रहे हैं. माना जाता है कि शारीरिक बीमारियों की ही तरह मानसिक बीमारियां भी काफी खतरनाक है. कुछ लोग इसे मानसिक तनाव और डिप्रेशन का नाम दे देते है. विश्व स्वास्थय संगठन के अनुसार कुछ लोग ऐसे भी जो अपनी बीमारी का इलाज नहीं करवाते हैं. उन्हें ये डर लगा रहते है कि लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे. इसकेल पीछे का मुख्य कारण है कि लोग मानसिक बीमारी को पागलपन समझ बैठते हैं. इससे लोग और डिप्रेशन में चले जाते हैं. जब एक व्यक्ति ठीक से सोच नहीं पाता है,उसका अपनी भावनाओं पर काबू नहीं होता एसी स्थिति को मानसिक बीमारी कहते हैं. आज हम बात करेंगे कि दुनिया में लोग किस तरह की बीमारियों से लड़ रहे होते हैं. शायद कुछ बीमारियां तो ऐसी भी होती है जो लाइलाज होती है.
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ये सुनने में थोड़ा अजीब है लेकिन लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं इस बीमारी में मरीज खुद को जिंदा लाश समझने लगता है. इसमें मरीज को इतना खतरनाक डिप्रेशन हो जाता है कि वो खुद को चलती-फिरती लाश समझ बैठता है. ये नींद की कमी या दवाइयों के ज्यादा डोज़ लेने से हो जाता है. इस बीमारी में इंसान खुद को नगण्य समझ बैठता है. लेकिन इस बीमारी के लक्षण समझने की कोई वजह नहीं मिली है.
इस बीमारी को Capgras Syndrome बोलते हैं. इस बीमारी को दिमागी गड़बड़ी से जोड़कर भी देखा जाता है. ये किसी फिल्मी सीन में याददाश्त खो जाने जैसा नहीं है कि अपने परिवार को ही न पहचान पाए. इस बीमारी में तो मरीज को ये यकीन हो जाता है कि उसके आस-पास का कोई व्यक्ति बदल गया है और उसके भेश में कोई दूसरा व्यक्ति बैठा है. ऐसा भी लग सकता है कि किसी लड़की के भेश में लड़का छुपा हुआ है. दिमाग में चेहरा और आवाज पहचानने वाले हिस्से और इमोशन पहचानने वाले हिस्से में तालमेल नहीं रह जाता और यही कारण है कि मरीज को लगता है कि उसके किसी अपने की जगह किसी बहरूपिए ने ले ली है.
एलिस इन द वंडरलैंड सिंड्रोम यह एक मूवी का नाम है. इस मूवी में कोई चीज या तो बहुत बड़ी दिखती है या बहुत ही छोटी. यह एक वीजुअल न्यूरोलॉजी बीमारी होती है. इसमें मरीज किसी चीज को बहुत छोटा देखता है जैसे किसी दूरबीन के गलत हिस्से से देख रहा हो. इस बीमारी में ऐसा भी होता है कि मरीज को लगे जैसे कोई पास रखी चीज भी बहुत दूर रखी हो. ये बीमारी आंखों की नहीं है बल्कि ये बीमारी तो दिमाग में गलत सिग्नल पहुंचने से होती है. इसमें मरीज के बाकी सेंस जैसे सुनने और छूने की शक्ति पर भी असर पड़ता है.
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दुनिया में कई लोग ऐसे भी है जो इंसानों को भी खाते हैँ. यह सुनने में थोड़ा अजीब है. ये बीमारियां Lesch-Nyhan Syndrome में होती है. इस तरह की बीमारियों में इंसान दूसरों को नहीं बल्कि खुद को ही खाने लगता है. बीमारी में मरीज के शरीर में इतना यूरिक एसिड बनता है कि उसके जोड़, मांसपेशियां और दिमाग पर असर होने लगता है. इस बीमारी में मरीज खुद के होठों को या अंगुलियों को ही काटने लगता है. बीमारी इस इस हद तक बढ़ जाती है कि मरीज के दांत को हटाना पड़ता है ताकि वो खुद को ज्यादा नकसान ना पहुंचाये.
इरोटोमेनिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें मरीज को ये यकीन हो जाता है कि कोई सिलेब्रिटी उससे बहुत प्यार करता है और मीडिया, सोशल स्टेटस, टेलिपैथी या किसी अन्य तरीके से उसे मैसेज भेजने की कोशिश कर रहा है. मरीज प्यार में इतना पागल हो जाता है कि वो किसी भी तरह से उस सिलेब्रिटी का साथ पाने की कोशिश करता है. इसे ऑब्सेसिव लव या फैन फॉलोविंग से जोड़कर न देखें ये बीमारी हकीकत में इतनी खतरनाक होती है कि लोग सुसाइड तक कर लेते हैं. इतना ही नहीं अगर सिलेब्रिटी ने मना कर दिया तो भी मरीज को लगता है कि ये सच नहीं है और धोखे वाले प्यार के चक्कर में वो पड़ा रहता है.
इस प्रकार की बीमारी सेल्फ आइडेंटिटी डिसऑर्डर में होती है. इसमें भी कई तरह की बीमारियां होती है. इसमें मरीज खुद को एक जानवर समझ बैठता है और घास खाता रहता है. वैज्ञानिकों के अनुसार यह बीमारी सपनों से शुरू होती है.
यह एक बहुत ही खतरनाक बीमारी होती है. इस बीमारी में दिमाग के लेफ्ट और राइट पार्ट में सिग्नल ठीक से नहीं पहुंच पाते हैं और इसके कारण ही मरीज का एक हाथ अपने आप काम करने लगता है और उसे दिमाग सिग्नल नहीं भेजता है. इसका मतलब ये है कि हाथ में अपनी अलग मर्जी आ जाती है. एक हाथ बिना दिमाग के हिसाब से काम करता है. वो बिना ऑर्डर किए किसी को छू सकता है कोई चीज गिरा सकता है. आपका काम बिगाड़ सकता है. किसी को छेड़ सकता है या किसी का खून भी कर सकता है और मरीज उसे रोक नहीं पाता है. एक पेशंट कैरेन ब्रायन के मुताबिक उसका एक हाथ सिगरेट जलाता था तो दूसरा अपने आप उसे बंद कर देता था. अगर एक हाथ टेलिफोन मिलाता था तो दूसरा अपने आप उसे काट देता था. एक हाथ कॉफी बनाता था तो दूसरा अपने आप उसे फेक देता था.
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इस बीमारी में मरीज कोई भी फैसला नहीं ले पाता है. यह कोई भविष्य से जुड़ा फैसला नहीं होता है. इसमें हर काम करने से पहले मरीज सोचता है कि इस काम को किया जाए या नहीं. इस बीमारी में मरीज नहाने से पहले,सोने से पहले किसी की सलाह लेकर या पूछ कर करते हैं. सोने या उठने से पहले भी सलाह लेकर करते हैं.
यह बड़ी अजीब और रोचक बीमारी है. ये फॉरेन एक्सेंट सिंड्रोम में होती है. जरा सोचिए कोई हिंदुस्तानी अचानक सोकर उठे और ऑस्ट्रेलियन इंग्लिश बोलने लगे. घर वाले पागल समझने लगेंगे. कुछ ऐसा ही हुआ ब्रिटिश महिला सारा कोलविल के साथ. एक सर्जरी के बाद अचानक एक दिन वो चीनी एक्सेंज में बात करने लगी. ये बहुत अजीब बीमारी है और अभी तक इस बीमारी के सिर्फ कुछ मरीज ही मिले हैं.
इस बीमारी में लोगों को लगता है कि उनके गुप्तांग सिकुड़ रहे हैं और एक दिन गायब हो जाएंगे. इसके बाद वो मर जाएंगे. ऐसी बीमारी के सबसे ज्यादा मरीज साउथ ईस्ट एशिया में पाए गए हैं.
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