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शीतला अष्टमी का उल्लेख स्कंदपुराण में मिलता है. शीतला माता की उपासना का मुख्य पर्व शीतला अष्टमी है. शीतला अष्टमी का पर्व चैत्र मास की कृष्णपक्ष की अष्ठमी को यह त्योहार मनाया जाता है. इस बार शीतला अष्टमी 4 अप्रैल को है. होली के बाद इसे मनाया जाता है. इस दिन शीतला माता का व्रत और पूजन किया जाता है. शीतला अष्टमीके दिन घर में बासी खाना खाने का रिवाज होता है इसे बासौड़ा के नाम से भी जाना जाता है. शीतला अष्टमी के एक दिन पहले खाना बनाकर तैयर कर लिया जाता है. बासोड़ा के दिन लोग घरों में चुल्हा नहीं जलाते हैं शीतला माता को भी बासी खाने का ही भोग लगाया जाता है. अष्टमी ऋतु परिवर्तन का संकेत देती है इस बदलाव से बचने के लिए साफ-सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है.
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इनका स्वरूप अत्यंत शीतल है. ये कष्ट-रोग हरने वाली होती हैं. इनकी सवारी गधे की है और हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते लिए रखती है. गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान होती हैं. मां शीतला के हाथ में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते सफाई और समृद्धि का सूचक हैं. माता शीतला को शीतल जल और बासी खाद्य पदार्थ चढ़ाया जाता है. इसी के कारण इसे बसौड़ा भी कहते हैं. इन्हें चांदी का चौकोर टुकड़ा भी अर्पित करते हैं जिस पर इनकी छवि को उकेरा गया हो. शीतला माता को चेचक और चिकन पॉक्स जैसे रोगो की देवी माना गया है।
शीतला अष्टमी- रविवार 4 अप्रैल को
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – सुबह 06:08 से शाम 06:41 तक
अवधि – 12 घंटे 33 मिनट
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 04, 2021 को सुबह 04:12 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अप्रैल 05, 2021 को देर रात 02:59 बजे
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शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा के समय उन्हें खास मीठे चावल का भोग चढ़ाया जाता है. ये चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं. इन्हें सप्तमी की रात को बनाया जाता है. इसी प्रसाद को घर में सभी सदस्यों को खिलाया जाता है.शीतला अष्टमी के दिन घर में नई मटकी रखने की भी प्रथा होती है.
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चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि रोगों के संक्रमण से आम व्यक्ति को बचाने के लिए शीतला अष्ठमी मनाई जाती है. इस दिन आखिरी बार आप बासी भोजन खा सकते हैं. इसके बाद से बासी भोजन का प्रयोग बिल्कुल बंद कर देना चाहिए. अगर इस दिन के बाद भी बासी भोजन किया जाए तो स्वास्थय से संबंधित समसंयाएं आ सकती है. यह पर्व गर्मी के मौसम में आता है. गर्मी के मौसम में आपको साफ-सफाई, शीतल जल और एंटीबायटिक गुणों से युक्त नीम का विशेष प्रयोग करना चाहिए.
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पूजा की थाली तैयार करें. थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें।
3. दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, होली वाली बड़कुले की माला, सिक्के और मेहंदी रखें.
4. दोनों थाली के साथ में लोटे में ठंडा पानी रखें.
माता को सभी चीज़े का भोग लगाने के बाद खुद और घर से सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं।
7. हाथ जोड़कर माता से प्रार्थना करें और कहे- ‘हे माता, मान लेना और शीली ठंडी रहना’।
8. घर में पूजा करने के बाद अब मंदिर में पूजा करें।
मेहंदी, मोली और वस्त्र अर्पित करें।
बड़कुले की माला व आटे के दीपक को बिना जलाए अर्पित करें।
अंत में वापस जल चढ़ाएं और थोड़ा जल बचाएं। इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं और थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कें।
इसके बाद जहां होलिका दहन हुआ था वहां पूजा करें। थोड़ा जल चढ़ाएं और पूजन सामग्री चढ़ाएं।
14. घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें।
15. अगर पूजन सामग्री बच जाए तो गाय या ब्राह्मण को दे दें।
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